Indian Railways: जब रेलवे ने 168 चूहों को पकड़ने के लिए खर्च कर डाले थे 69 लाख, जाने क्या था पूरा मामला
उत्तर रेलवे ने चूहों को दूर भगाने के लिए हर संभव कोशिश की है और लाखों रुपये खर्च किए हैं। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि रेलवे ने एक चूहा को पकड़ने के लिए 41 हजार रुपये खर्च किए हैं और इसी तरह 69 लाख रुपये तीन वर्ष में खर्च किए हैं।
चूहों के आतंक को कम करने के लिए उत्तर रेलवे ने चूहों को पकड़ने के लिए एक साल में 23.2 लाख रुपये खर्च किए हैं। ये जानकारी आरटीआई से मिली थी। अब लखनऊ मंडल ने इस पर प्रतिक्रिया दी है और खंडन प्रस्तुत किया है।
खंडन अधिकारी ने जारी किया
एक रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ मंडल में पदस्थ सीनियर डिविजनल कमर्शियल मैनेजर रेखा शर्मा ने कहा की इस जानकारी को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है। साथ ही इस पूरे मामले में सफाई भी दी है। उन्होंने कहा है कि ये जानकारी गलत तरीके से पेश की गई है।
रेलवे ने क्या कहा
रेलवे का कहना है कि गोमतीनगर स्थित मेसर्स सेंट्रल वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन के पास लखनऊ मंडल में कीटों और चूहों का नियंत्रण करने का जिम्मा है। यह भारत सरकार का उपक्रम है।
इसका उद्देश्य कीटो और चूहों को कंट्रोल करना है यह फ्लशिंग, छिड़काव, स्टेबलिंग और रखरखाव करता है। कॉकरोच जैसे कीटों से रेलवे लाइनों को बचाना; और चूहों को ट्रेन बोगी में घूसने से बचाना।
गलत तरीके से पेश की गई जानकारी
रेलवे का कहना है कि इसमें चूहों को केवल पकड़ना नहीं शामिल नहीं है, बल्कि चूहों को बढ़ने से रोकना है। वहीं ट्रेनों के बोगी में चूहों और कॉकरोच से बचने के लिए कीटनाशक छिड़काव से लेकर कई प्रकार की गतिविधियां शामिल हैं। लखनऊ मंडल ने आपत्ति दर्ज कराई है और कहा है कि एक चूहे पर 41 हजार रुपए खर्च करने का दावा गलत है।
रेलवे अधिकारी ने क्या कहा
मीडिया रिपोर्ट ने बताया कि रेलवे चूहों को पकड़ने में प्रति वर्ष 23.2 लाख रुपये खर्च करता है। वहीं, तीन साल में 69 लाख रुपये खर्च करके केवल 168 चूहों को पकड़ा गया है। रेलवे अधिकारी का कहना है कि 25 हजार डिब्बों में चूहों को नियंत्रित करने पर 94 रुपये प्रति बोगी खर्च हुए हैं।
क्या था मामला
एमपी के आरटीआई एक्टविस्ट चंद्रशेखर गौड़ की और से जानकारी मांगी गई थी। रेलवे ने दिल्ली, अंबाला, लखनऊ, फिरोजपुर और मुरादाबाद के पांच मंडल से सूचना मांगी थी, लेकिन सिर्फ लखनऊ मंडल ने इसका जवाब दिया था।