home page

शादी के बाद बिना तलाक लिए लिव-इन रिलेशन में रहना सही है या नही? हाईकोर्ट ने लिया ये बड़ा डिसीजन

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए पति को छोड़कर दूसरे पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में रह रही महिला और उसके प्रेमी की सुरक्षा की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
 | 
high-court-decision-woman-was-living-in-livein-relationship
   

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए पति को छोड़कर दूसरे पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में रह रही महिला और उसके प्रेमी की सुरक्षा की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने इसे हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के खिलाफ बताया और याचिकाकर्ताओं पर 5,000 रुपये का जुर्माना (Fine) भी लगाया।

हमारा Whatsapp ग्रूप जॉइन करें Join Now

वैधानिक और सामाजिक बाधाए 

न्यायालय ने कहा, "हमें यह समझ में नहीं आता कि समाज में अवैधता की अनुमति देने वाली इस तरह की याचिका को कैसे स्वीकार किया जा सकता है।" इस फैसले ने समाज में विवाह (Marriage) और संबंधों की वैधता पर एक मजबूत संदेश दिया है जो कि भारतीय विवाह कानूनों (Indian Marriage Laws) और सामाजिक मूल्यों (Social Values) के खिलाफ है।

याचिकाकर्ताओं की अपील और अदालत की प्रतिक्रिया

याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अपील की थी कि महिला के पति और परिवार से उन्हें खतरा (Threat) है और उन्हें शांतिपूर्ण जीवन (Peaceful Life) जीने की अनुमति दी जाए। हालांकि अदालत ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Article 21) एक व्यक्ति को स्वतंत्रता की अनुमति दे सकता है लेकिन यह स्वतंत्रता कानूनी दायरे (Legal Framework) में होनी चाहिए।

नैतिकता और कानूनी प्रावधानों के बीच संघर्ष

अदालत ने यह भी कहा "क्या हम ऐसे लोगों को सुरक्षा दे सकते हैं जो ऐसा कृत्य करते हैं जिसे हिंदू विवाह कानून के शासनादेश के खिलाफ कहा जा सकता है।" इससे यह स्पष्ट होता है कि नैतिकता (Morality) और कानूनी प्रावधानों (Legal Provisions) के बीच संतुलन बनाना अदालतों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

अदालत का निर्णय और समाज पर असर 

इस फैसले के माध्यम से अदालत ने न केवल लिव-इन संबंधों के सामाजिक और कानूनी पहलुओं (Social and Legal Aspects) पर प्रकाश डाला है बल्कि यह भी संकेत दिया है कि समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Freedom) और सामूहिक मूल्यों (Collective Values) के बीच एक संतुलन होना चाहिए। अदालत ने इस मामले में कानून के अनुसार निर्णय लेते हुए समाज के नैतिक ढांचे (Moral Framework) की रक्षा की है।