Live In Relation: शादी से पहले ही साथ रह रही महिलाओं को मिला तगड़ा झटका, सुना दिया ये बड़ा फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में एक शादीशुदा महिला द्वारा दूसरे पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप (Live-In Relationship) में रहने के आधार पर संरक्षण (Protection) देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इसे अवैध संबंधों की मुहर लगवाने की कोशिश के रूप में देखा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निर्णय लिव-इन रिलेशनशिप के प्रति भारतीय समाज के रुख को दर्शाता है। यह मामला सामाजिक नैतिकता, कानूनी वैधता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Freedom) के बीच के संतुलन की जटिलताओं को भी उजागर करता है।
यह निर्णय समाज में व्याप्त विभिन्न मान्यताओं और कानूनी ढांचे के बीच सामंजस्य स्थापित करने की चुनौती को भी प्रकट करता है।
कोर्ट का दृष्टिकोण
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान (Indian Constitution) लिव-इन संबंधों को अनुमति देता है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि याचियों को पति-पत्नी माना जा सकता है। इस तरह के संबंध सामाजिक नैतिकता (Social Morality) के विपरीत हैं।
समाज और लिव-इन रिलेशनशिप
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि भारतीय समाज (Indian Society) लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकार नहीं करता है। इसलिए, कोर्ट अवैधानिकता (Illegality) को अनुमति नहीं दे सकती।
याचिकाकर्ता की स्थिति
याचिकाकर्ता सुनीता देवी ने अपने पति द्वारा पीड़ा और परेशानी के आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा कि उनके पति ने उन्हें अपने दोस्तों से संबंध बनाने को कहा, जिसके कारण उन्होंने अपने पति का घर छोड़ दिया और एक दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगीं। हालांकि उन्होंने पुलिस से इस बारे में शिकायत दर्ज नहीं करवाई थी।
कोर्ट की सलाह
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को नियमानुसार पुलिस से शिकायत दर्ज करने की सलाह दी। इससे उन्हें उचित कानूनी सहायता मिल सकती है।