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इस नस्ल के पशु को देख लोग भूले मुर्रा नस्ल की भैंस, दूध और फैट ने नही है कोई मुकाबला

आज के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की रुचि पारंपरिक खेती और पशुपालन से आगे बढ़कर डेयरी व्यवसाय की ओर तेजी से बढ़ रही है। इस उद्यम में उन्हें न केवल खुद के लिए बल्कि अन्य लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर....
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highest fat percentage in buffalo breed
   

आज के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की रुचि पारंपरिक खेती और पशुपालन से आगे बढ़कर डेयरी व्यवसाय की ओर तेजी से बढ़ रही है। इस उद्यम में उन्हें न केवल खुद के लिए बल्कि अन्य लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। युवा अब विभिन्न नस्लों के पशुओं का पालन कर अपने डेयरी उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं।

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ग्रामीण युवाओं द्वारा डेयरी व्यवसाय को अपनाना न केवल उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है। नीली रावी भैंस की उच्च उत्पादन क्षमता इसे एक आदर्श पसंद बनाती है। इस प्रकार ग्रामीण युवा इस व्यवसाय में नई ऊर्जा और नई तकनीक ला रहे हैं। जो कि देश के कृषि-आधारित विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

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नीली रावी भैंस

रावी नस्ल की भैंसें जिन्हें नीली रावी के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उच्च दूध उत्पादन क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं। इस नस्ल की उत्पत्ति पाकिस्तान के मोंटगोमरी में हुई थी और यह भारत में मुख्य रूप से पंजाब और आसपास के इलाकों में पाली जाती है। इसकी उच्च दूध उत्पादन क्षमता और दूध में उच्च वसा सामग्री के कारण डेयरी उद्यमी इस नस्ल को अधिक पसंद करते हैं।

नीली रावी भैंस की पहचान कैसे करें?

नीली रावी भैंस की खासियतें इसे अन्य नस्लों से अलग करती हैं। इसका शरीर भारी और मुख्य रूप से काला होता है, साथ ही इसके माथे, नाक और पैरों पर सफेद धब्बे होते हैं। इसकी पूंछ लंबी और सफेद होती है, जो इसे अन्य भैंसों से विशेष बनाती है। इस नस्ल की भैंसें एक दिन में 8 से 10 लीटर दूध दे सकती हैं और प्रति ब्यांत में 1800 से 2000 लीटर तक दूध दे सकती हैं।

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नीली रावी भैंस का आहार और देखभाल

नीली रावी भैंस को उचित देखभाल और संतुलित आहार प्रदान करना जरूरी है ताकि वह अपनी पूरी क्षमता से दूध उत्पादन कर सके। इसके आहार में मुख्य रूप से फलीदार चारा, मक्का, गेहूं, जौ, बाजरा और अन्य अनाज शामिल होने चाहिए। इसे देने वाले चारे में विटामिन और मिनरल्स की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए ताकि भैंस स्वस्थ रह सके और अच्छा दूध दे सके।