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मुगल हरम में रहने वाली दासियों को IPL खिलाड़ियों से ज्यादा मिलती थी सैलरी, सच्चाई जानकर तो आपको भी नही आएगी नींद

इतिहास के पन्नों को पलटते समय हम मुगल साम्राज्य के विविध पहलुओं से रूबरू होते हैं। इसी खोज में हमें मुगल हरम के बारे में जानने को मिलता है, जो न केवल विवादास्पद रहा है बल्कि अनेक इतिहासकारों के बीच मतभेद...
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Salary of servants of Mughal Haram
   

इतिहास के पन्नों को पलटते समय हम मुगल साम्राज्य के विविध पहलुओं से रूबरू होते हैं। इसी खोज में हमें मुगल हरम के बारे में जानने को मिलता है, जो न केवल विवादास्पद रहा है बल्कि अनेक इतिहासकारों के बीच मतभेद का कारण भी बना है। मुगल हरम का इतिहास मुगल साम्राज्य के वैभव और सामाजिक ढांचे की एक झलक प्रस्तुत करता है।

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हालांकि इसके अंतर्गत रखे गए व्यक्तियों की स्थिति और उन पर हुए व्यय ने इसे इतिहास में विवादास्पद बना दिया है। मुगल हरम की कहानियां आज भी हमें उस समय की सामाजिक विषमताओं और शाही जीवनशैली की एक गहरी समझ प्रदान करती हैं।

हरम की अवधारणा और उसका महत्व

मुगल साम्राज्य में हरम को बादशाहों की निजी और सामाजिक जिंदगी का एक अहम हिस्सा माना जाता था। यहाँ रानियों और दासियों को रखा जाता था। जिनका मुख्य कार्य बादशाह की सेवा करना और उन्हें खुश रखना था। मुगल हरम पर खर्च होने वाला राजकोष का एक बड़ा हिस्सा इस बात का प्रमाण है कि यह कितना महत्वपूर्ण था।

दासियों की तनख्वाह और उनकी स्थिति

मुगल हरम में रहने वाली दासियों की तनख्वाह इतनी अधिक थी कि आज के दौर में भी इसकी तुलना करना मुश्किल है। अकबर के समय तक हरम में लगभग 5000 दासियां मौजूद थीं, जिनकी तनख्वाह आज के समय में भी चौंकाने वाली है। मुगल हरम में रहने वाली एक दासी पर करीब 1000 रुपये से लेकर 1600 रुपये तक खर्च किए जाते थे।

आज के समय में यह पैसे देखने में बहुत कम लग रहे होंगे लेकिन आपको बता दें कि यहां जिस जमाने की बात हो रही है, उस समय 10 रुपये में 1 तोला सोना मिल जाता था और 5 रुपये में पूरे महीने का राशन आ जाता था। इससे यह स्पष्ट होता है कि मुगल सम्राटों का जीवन कितना वैभवशाली था।

हरम की सुरक्षा व्यवस्था

हरम की सुरक्षा के लिए ज्यादातर तैनात किए गए सैनिक ट्रांसजेंडर थे, जो हिंदुस्तानी भाषा नहीं जानते थे। इस सख्त सुरक्षा व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य बादशाह के अलावा किसी भी अन्य पुरुष की हरम में प्रवेश निषेध करना था।

हरम का इतिहासिक परिदृश्य

माना जाता है कि मुगल हरम की शुरुआत बाबर के शासनकाल में हुई थी। औरंगजेब के शासनकाल तक आते-आते हरम की प्रथा में कमी आई और यह रंग-रलियों का अड्डा बन गया। आगरा, दिल्ली, फतेहपुर सिकरी और लाहौर जैसे स्थानों पर मुगल हरम का निर्माण किया गया था।