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भारत ही नही बल्कि इन देशों में भी महिलाएं पहनती है मंगलसूत्र, जाने कैसे हुई थी इसकी शुरुआत

भारतीय संस्कृति में मंगलसूत्र का विशेष महत्व है। इसे वैवाहिक बंधन का प्रतीक माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार मंगलसूत्र पहनने की परंपरा छठी शताब्दी में शुरू हुई थी। जब इसके पहले प्रमाण दक्षिण भारत से मिलते हैं।

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भारतीय संस्कृति में मंगलसूत्र का विशेष महत्व है। इसे वैवाहिक बंधन का प्रतीक माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार मंगलसूत्र पहनने की परंपरा छठी शताब्दी में शुरू हुई थी। जब इसके पहले प्रमाण दक्षिण भारत से मिलते हैं।

इस परंपरा को आदि गुरु शंकराचार्य की किताब ‘सौंदर्य लहरी’ में भी उल्लेखित किया गया है, जो इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है। मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले अवशेष भी मंगलसूत्र के प्राचीन इतिहास को साबित करते हैं।

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मंगलसूत्र भारतीय वैवाहिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है। जो न केवल भारत में बल्कि अन्य हिंदू प्रभावित देशों में भी प्रचलित है। यह परंपरा न केवल पति-पत्नी के बीच के बंधन को मजबूती प्रदान करती है। बल्कि यह सामाजिक और धार्मिक महत्व को भी दर्शाती है।

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मंगलसूत्र का अर्थ और महत्व

मंगलसूत्र जो 'मंगल' यानी पवित्र और 'सूत्र' यानी धागा से मिलकर बना है। मंगलसूत्र को हिंदू धर्म में पति-पत्नी के बीच के अटूट बंधन का प्रतीक माना जाता है। इसे पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए पहना जाता है।

भारतीय समुदायों में विशेष रूप से तमिलनाडु में इसे थाली या थिरू मंगलयम कहा जाता है और इसमें सोने, सफेद या लाल मोतियों का भी समावेश होता है। इसके अलावा नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में भी हिंदू समुदाय के बीच यह प्रचलित है।

MANGALSUTRA

सामाजिक और आधुनिक संदर्भ में मंगलसूत्र

भले ही मंगलसूत्र की परंपरा प्राचीन हो लेकिन आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। डॉ. उषा बालकृष्णन के अनुसार आज के समय में मंगलसूत्र का चलन भी विवाह और आभूषणों की विपणन रणनीतियों के कारण है। फिर भी यह हिंदू धर्म में विवाह के सबसे पवित्र प्रतीकों में से एक है।

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मंगलसूत्र उतारने की परंपरा

प्राचीन समय में मंगलसूत्र न केवल शादी का प्रतीक था। बल्कि यह महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा का भी साधन था। विधवा होने पर या दुनियावी मोह-माया से विरक्ति इच्छा पर ही इसे उतारा जाता था।

मंगलसूत्र की मान्यताएं और इसके विभिन्न रूप क्षेत्रीय विशेषताओं के अनुसार बदलते हैं। यह महिलाओं के सोलह श्रृंगार में से एक माना जाता है और इसे विशेष रूप से शुभ माना जाता है।