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इस तरह की प्रॉपर्टी को चाहकर भी नही बेच सकते माता-पिता, हाईकोर्ट ने लिया बड़ा डिसीजन

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका पर विचार करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें नाबालिग की संपत्ति की बिक्री के संबंध में कठोर दिशा-निर्देश के बारे में बताया हैं।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक निर्णय ने कानूनी प्रक्रियाओं में एक नई दिशा प्रदान की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि फोन पर की गई बातचीत की रिकॉर्डिंग, चाहे वह गैर-कानूनी तरीके से ही क्यों न की गई हो, सबूत के तौर पर स्वीकार की जा सकती है। यह फैसला कानूनी प्रक्रियाओं में तकनीक के उपयोग को एक नई वैधता प्रदान करता है।  विवादित मामले का पूरा वर्णन  लखनऊ पीठ के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने फतेहगढ़ छावनी बोर्ड के पूर्व सीईओ, महंत प्रसाद राम त्रिपाठी द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई की। त्रिपाठी पर आरोप था कि उन्होंने बोर्ड के एक सदस्य से रिश्वत मांगी थी, जिसे फोन कॉल के माध्यम से रिकॉर्ड किया गया था।  कोर्ट का अनोखा निर्णय  ट्रायल कोर्ट ने त्रिपाठी की डिस्चार्ज अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसके विरोध में उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया। उनका तर्क था कि फोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग अवैध तरीके से प्राप्त की गई थी, इसलिए इसे सबूत के रूप में नहीं माना जा सकता। हालांकि, हाई कोर्ट ने त्रिपाठी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि साक्ष्य को इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि वह अवैध रूप से प्राप्त किया गया है।  साक्ष्य की वैधता पर एक नज़र  इस निर्णय के साथ, हाई कोर्ट ने कानूनी प्रणाली में एक नया प्रतिमान स्थापित किया है। इसने स्पष्ट किया कि न्याय की प्राप्ति के लिए साक्ष्य की प्रमाणिकता और उसका महत्व उसके प्राप्ति के तरीके से अधिक महत्वपूर्ण है।
   

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका पर विचार करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें नाबालिग की संपत्ति की बिक्री के संबंध में कठोर दिशा-निर्देश के बारे में बताया हैं।

मामले की जांच 

एक महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपनी विपरीत परिस्थितियों का वर्णन करते हुए कोर्ट से अपील की कि उसे अपने नाबालिग पुत्र की नाम पर दर्ज प्रॉपर्टी बेचने की अनुमति दी जाए। यह मामला उसके ससुर द्वारा लिए गए 40 लाख रुपये के लोन और उसके बाद हुई उनकी बिना कारण मृत्यु से जुड़ा था।

कोर्ट की दिशा-निर्देश

हाईकोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए स्पष्ट किया कि नाबालिग की प्रॉपर्टी को बेचने के आदेश तब तक जारी नहीं किए जा सकते जब तक कि यह बच्चे की भलाई के लिए आवश्यक न हो।

याचिकाकर्ता की परिस्थितियाँ

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि किस प्रकार बैंक के दबाव में आकर उन्होंने बाहर से पैसा लेकर बैंक का कर्ज चुकता किया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रॉपर्टी की कीमत 60 लाख से अधिक है लेकिन बैंक इसे औने-पौने दामों पर बेचने को तैयार था।

हाईकोर्ट का फैसला

कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपने निर्णय में कहा कि बच्चे के माता-पिता को भी बिना कोर्ट की अनुमति के नाबालिग की प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार नहीं है। लेकिन इस मामले में यह देखते हुए कि नाबालिग के हित में यह आवश्यक है कोर्ट ने प्रॉपर्टी बेचने की अनुमति दे दी।

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न्यायिक दृष्टिकोण की सराहना

इस निर्णय के माध्यम से हाईकोर्ट ने न केवल नाबालिग के हितों की रक्षा की, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि आपातकालीन स्थितियों में परिवार को न्यायिक सहायता प्राप्त हो सके।