Surajkund Mela 2024: सूरजकुंड मेला घूमने का प्लान बना रहे है तो जरुर देखना ये चीजें, बस जाने से पहले इन बातों को जरुर जान लेना
दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद में 17 दिन तक चलने वाले सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला का शुभारंभ हो गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने शुक्रवार को 37वें सूरजकुंड मेले का उद्घाटन किया, जो 2 फरवरी से 18 फरवरी तक चलेगा। अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा, भारत के आठ उत्तर पूर्वी राज्य, इस बार मेले में सांस्कृतिक भागीदार हैं।
18 फरवरी तक यह ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेला चलेगा। देश के अलावा दुनिया के चालिस से अधिक देशों के कलाकार इसमें प्रस्तुति देंगे। सूर्यकुंड मेला जाना चाहते हैं तो इन महत्वपूर्ण बातों को पहले अवश्य जानें।
आप मेट्रो ट्रेन से जा सकते हैं
- आप कार से बदरपुर बॉर्डर या तुगलकाबाद होते हुए फरीदाबाद के मेले में जा सकते हैं। सूरजकुंड आईएसबीटी दिल्ली से 25 किलोमीटर दूर है।
- ट्रेन से मेला स्थल तक पहुंचने के लिए आप तुगलकाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरकर ऑटो से करीब दो किलोमीटर दूर जा सकते हैं।
- मेट्रो रेल से जाने के लिए आपको बदरपुर स्टेशन पर उतरना होगा। आप वहां से दो किलोमीटर दूर ऑटो लेकर सूरजकुंड जा सकते हैं।
यहां वाहन पार्क होंगे
तुगलकाबाद शूटिंग रेंज से आने वाले वाहनों को खोरी गांव के पास एक पार्किंग में खड़ा कर दिया जाएगा। बदरपुर से आने वाले लोग मेले के दिल्ली गेट के पास गाड़ी पार्क कर सकेंगे। ग्यारह पार्किंगों में कुल पंद्रह हजार वाहन खड़े करने की क्षमता है।
बाइक पर पांच सौ रुपये देना होगा। सोमवार से शुक्रवार तक, तीन पहिया और चार पहिया वाहनों के लिए 100 रुपये प्रति वाहन और शनिवार से रविवार तक, 200 रुपये प्रति वाहन लगेगा। वाहनों के पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह है।
प्रवेश शुल्क
सोमवार से शुक्रवार तक प्रत्येक व्यक्ति को 100 रुपये देने होंगे, लेकिन शनिवार, रविवार और राजपत्रित अवकाश के दिन 180 रुपये देने होंगे। दिव्यांग व्यक्ति और विद्यार्थी को कोई शुल्क नहीं लगेगा।
कब से कब तक
सुबह 10 बजे मेला शुरू होगा और 10 बजे रात तक चलेगा। रोजाना शाम छह बजे से रात आठ बजे तक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
मेले की विशेषता
- देश के 27 राज्यों सहित दुनिया भर की कला-संस्कृति से परिचित होने का अवसर।
- विभिन्न देशों की कला और सामान खरीदने का अवसर
- आप बिहार का लिट्टी-चाोखा, गोहाना का जलेबा, गुजरात का ढोकला-इडला, राजस्थान की दाल-बाटी और चूरमा का स्वाद ले सकते हैं।
- रेशम या कालीन, आप आसानी से बनते देख सकते हैं।
सूर्यकुंड मेला को शिल्प का महाकुंभ बताते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि यह हमारी परंपरा और नवीनता का उत्सव है। उनका कहना था कि शिल्पकारों के लिए कोई सीमा नहीं है। कलाकार इंसानियत को एक दूसरे से जोड़ते हैं।
एक समाज की संस्कृति और सभ्यता को दूसरे समाज तक पहुंचाते हैं। शिल्पकारों को एक ही मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करने के साथ-साथ व्यापार करने का अवसर मिलता है। कलाकार मानवता का प्रतीक हैं।