राजकुमारी के साथ दी जाने वाली दासियों को करने पड़ते थे ये काम, जवां दासियां चोरी छिपे जरुर करती थी ऐसे काम
भारतीय इतिहास में राजा-महाराजाओं के साम्राज्यों में दासियों की उपस्थिति आम थी। ये दासियां न केवल साम्राज्य के विस्तार और सुव्यवस्था में मदद करती थीं। बल्कि राजसी महलों की साज-सज्जा और शासक परिवार की सेवा में भी अपना योगदान देती थीं। भारतीय इतिहास में दास प्रथा विशेषकर राजपरिवारों में एक जटिल और विविधतापूर्ण व्यवस्था थी।
इसमें भले ही शोषण के कुछ उदाहरण मिलते हों, लेकिन मूल रूप से यह व्यवस्था परस्पर सम्मान और जिम्मेदारी के सिद्धांतों पर आधारित थी। यह व्यवस्था न केवल राजपरिवारों की भव्यता और समृद्धि को दर्शाती है बल्कि उस समय की सामाजिक और आर्थिक संरचना को भी प्रतिबिंबित करती है।
दासियों का चयन और उनकी भूमिका
मुख्यतः दासियों का चयन उनकी सुंदरता और कुशलता के आधार पर किया जाता था। ये दासियां महल की विभिन्न गतिविधियों में सहयोग प्रदान करती थीं। साथ ही रानियों और राजकुमारियों की सहायता करना इनका प्रमुख कार्य था।
दासियों की विवाह व्यवस्था
राजपरिवारों में विवाह के समय दासियों को दहेज के रूप में बेटी के साथ उसके ससुराल भेज दिया जाता था। इनका मुख्य उद्देश्य नए परिवार में बेटी की सहायता करना होता था। यह प्रथा न केवल सहायता के लिए थी, बल्कि राजपरिवारों के बीच संबंधों को मजबूती देने का एक माध्यम भी थी।
राजपरिवारों में दास प्रथा की जिम्मेदारी
राजपरिवारों में दास और दासियों की भरण-पोषण और उनकी संतानों की शादी की जिम्मेदारी उनके मालिकों की होती थी। इस प्रथा में दास और दासियों के परिवार को अच्छे से पालन-पोषण और सम्मान के साथ रखा जाता था।
दास प्रथा: व्यवस्था और शोषण
हालांकि समय के साथ इस व्यवस्था में कुछ खराबी और शोषण भी जुड़ गए। लेकिन मूलतः, यह व्यवस्था राजपरिवारों द्वारा अपने दास-दासियों का पूरा ध्यान रखने के लिए थी, जो कि अंग्रेजी गुलामी से काफी अलग थी।
दासियों की महत्वपूर्ण भूमिका
इन दासियों का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य राजकुमारी और उसके परिवार की रक्षा करना और शासन से संबंधित सूचनाओं को प्रदान करना था। इनकी उपस्थिति राजपरिवारों की सुरक्षा और संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कड़ी थी।