जिस देशभक्त का नाम सुनकर अंग्रेजो की भी कांपने लगती थी टांगे, भारत के इस म्यूजियम में रखी है उनकी आखिरी निशानी
चंद्रशेखर आजाद एक ऐसा नाम जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका जन्म झाबुआ जिले के भावरा गांव में हुआ था पर उनका सागर जिले से भी गहरा नाता रहा है। बताया जाता है कि आजाद फरारी के दिनों में सागर के बंडा इलाके में मुनीम के रूप में लोकरस परिवार के गोदाम पर रहे थे। उनकी मां जगरानी देवी ने भी उनकी शहादत के बाद लगभग डेढ़ साल तक सागर से करीब 45 किलोमीटर दूर रहली में रहीं।
अथक पथ संग्रहालय में आजाद की यादें
चंद्रशेखर आजाद की वीरता और बलिदान की गाथाओं को संजोए रखने के लिए बीना में अथक पथ संग्रहालय स्थापित किया गया है, जो सागर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। संग्रहालय में रखी गई आजाद की हाथ घड़ी जो करीब 100 साल पुरानी है आज भी उनकी वीरता की कहानियों को ताजा करती है। इसके साथ ही उनकी मां की पीतल की श्रृंगार पेटी में रखी गई है जो उनकी शादी के समय विदाई के दौरान उनके मायके से आई थी।
आजाद की धरोहरें संग्रहालय में
इस संग्रहालय को पिछले 35 साल से श्रीराम शर्मा द्वारा रखवाली की जा रही है। उन्हें लोग 'विकिपीडिया' के नाम से भी जानते हैं। श्रीराम शर्मा का कहना है कि इस हाथ घड़ी और श्रृंगार पेटी को आजाद के परिवार वालों ने उन्हें सम्मानपूर्वक संग्रहालय के लिए भेंट किया था। यह संग्रहालय न केवल उनकी निशानियों को सहेजता है, बल्कि उनकी कहानियों को भी जीवंत रखता है।
चंद्रशेखर आजाद जयंती
23 जुलाई को पूरे देश में चंद्रशेखर आजाद की जयंती मनाई जाती है। इस दिन को उनके जीवन और उनके अदम्य साहस की याद में विशेष रूप से याद किया जाता है। 1906 में जन्मे आजाद ने 1931 में अपनी आखिरी सांस तक अंग्रेजों का सामना किया और अपनी अंतिम गोली से स्वयं को शहीद कर लिया था। उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अद्वितीय अध्याय है, जो प्रेरणा का स्रोत बनता रहेगा।
संग्रहालय
बीना की नई बस्ती में रहने वाले राम शर्मा का जुनून ऐतिहासिक और क्रांतिकारियों से जुड़ी चीजों को संजोने का है। उनके इसी जुनून के चलते उन्होंने इतने वर्षों से इस संग्रहालय को बनाए रखा है और इसे लोगों के लिए एक शिक्षण स्थल बनाया है, जहाँ आकर वे इतिहास के इन पन्नों को महसूस कर सकते हैं।