मुगलों के दिए इस जख्म को आज भी झेल रही है राजस्थान की औरतें, उस टाइम की मजबूरी ने आज बना दी संस्कृति
राजस्थान के अलग अलग संस्कृति और परंपराओं में घूंघट प्रथा एक अनोखी और प्राचीन रिवाज है। यहाँ की महिलाओं द्वारा अपनाया गया यह तरीका न केवल उनकी संस्कृति की विशेषता बताता है बल्कि उनकी शालीनता और सम्मान के बारे में भी बताता है।
राजस्थान के अलग अलग संस्कृति और परंपराओं में घूंघट प्रथा एक अनोखी और प्राचीन रिवाज है। यहाँ की महिलाओं द्वारा अपनाया गया यह तरीका न केवल उनकी संस्कृति की विशेषता बताता है बल्कि उनकी शालीनता और सम्मान के बारे में भी बताता है।
मुगलों के समय से शुरुआत
इतिहास के पन्नों में देखें तो राजस्थान में घूंघट प्रथा की शुरुआत मुगल आक्रमणकारियों के समय में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था महिलाओं को उनकी नजरों से बचाना। विवाह समारोहों में मुगलों द्वारा महिलाओं के अपहरण की घटनाओं के कारण इस परंपरा को अपनाया गया।
सती प्रथा का अंतर्संबंध
इसी परिप्रेक्ष्य में सती प्रथा की भी उत्पत्ति हुई जिसे आगे चलकर परंपरा का रूप दिया गया। यह बताता है कि कैसे इतिहास में महिलाओं को इककट्ठा करने के नाम पर कई बार उन्हें सीमाओं में बांध दिया गया था।
परंपरा और आधुनिकता का मेल
आज के समय में भी राजस्थान में घूंघट की प्रथा प्रचलित है विशेषकर राजपूत समाज में। हालाँकि यह अब बुजुर्गों के प्रति सम्मान का प्रतीक माना जाता है। आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए भी यह परंपरा आज भी उतनी ही मान्यता प्राप्त है।
वैदिक युग से परंपरा का अभाव
वेदों और पुराणों में घूंघट की प्रथा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। यहाँ तक कि मनु स्मृति में भी जो औरतों के लिए कई कड़े नियम निर्धारित करती है इस प्रथा का कोई जिक्र नहीं है।
घूंघट और सेहरा
घूंघट के साथ-साथ दूल्हे का सेहरा पहनना और शेरवानी जैसे विवाह संबंधित कार्यक्रमों भी मुगलों के वक्त से चली आ रही परंपराएँ हैं।