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छोटे स्टेशन की पटरियों पर तो नुकीले पत्थर होते है पर बड़े स्टेशन पर नही होते, जाने इसके पीछे का क्या है असली कारण

हम सभी ने ट्रेन के सफर के दौरान पटरियों के बीच और आस-पास बिछे नुकीले पत्थरों को अवश्य देखा होगा। इन पत्थरों को तकनीकी भाषा में 'बैलेस्ट' कहा जाता है।
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हम सभी ने ट्रेन के सफर के दौरान पटरियों के बीच और आस-पास बिछे नुकीले पत्थरों को अवश्य देखा होगा। इन पत्थरों को तकनीकी भाषा में 'बैलेस्ट' कहा जाता है। यह पत्थर न सिर्फ ट्रैक को मजबूती देते हैं बल्कि अलग अलग प्रकार की भूमिकाएं भी निभाते हैं जैसे कि बरसात के दौरान पटरी के नीचे की जमीन को खिसकने से रोकना, मिट्टी को मजबूती से पकड़ना, खरपतवार को उगने से रोकना और ट्रेन के कंपन को कम करना।

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बैलेस्ट की उपयोगिता

ये पत्थर ट्रैक के आधार को मजबूत बनाने के साथ-साथ उसे स्थिर भी रखते हैं। जब ट्रेन पटरी से गुजरती है तो इन पत्थरों के बीच की जगह में हवा और पानी के लिए पर्याप्त स्थान होता है जिससे ट्रैक के नीचे की मिट्टी हमेशा सूखी रहती है। इससे पटरियों को लंबे समय तक कुछ नहीं और दुर्घटनाओं का खतरा कम होता है।

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बड़े स्टेशनों पर बैलेस्ट की कमी 

यदि आपने गौर किया हो तो बड़े स्टेशनों पर अक्सर ये पत्थर नहीं दिखाई देते। इसका कारण है स्टेशनों की सफाई और स्वच्छता को बनाए रखना। पुराने समय में बनी ट्रेनों के टॉयलेट से निकलने वाले मल-मूत्र सीधे पटरियों पर गिरते थे, जिससे इन पत्थरों पर गंदगी जमा हो जाती थी और उन्हें साफ करना कठिन हो जाता था। इसलिए, बड़े स्टेशनों पर आमतौर पर पटरियों को कंक्रीट की ढलाई से ढक दिया जाता है। इससे पटरियों की सफाई में आसानी होती है और पटरियां सुरक्षित रहती हैं।

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बैलेस्ट का महत्व और उसकी देखभाल

बैलेस्ट की उचित देखभाल और रखरखाव से रेलवे ट्रैक की उम्र बढ़ती है। नियमित जांच और सही समय पर मरम्मत से ट्रैक दुर्घटनाओं को रोकने में मदद मिलती है। बैलेस्ट के बिना ट्रेन की पटरियां अधिक दबाव में आ सकती हैं और उनका टूटना या खिसकना संभव हो सकता है।