जलेबी जैसे सींग वाली ये भैंस सालाना देती है 3000 लीटर दूध, कीमत भी महज 60 हजार
best buffalo breed: भारत के ग्रामीण इलाकों में पशुपालन और डेयरी फार्मिंग एक मुख्य व्यवसाय है जिसमें भैंस पालन का विशेष महत्व है. राजस्थान के बाड़मेर जिले सहित आसपास के क्षेत्रों में डेयरी फार्मिंग को बड़े पैमाने पर अपनाया गया है. विशेषकर मुर्रा नस्ल की भैंस का पालन प्रमुखता से किया जाता है जिसे पंजाब और हरियाणा में भी बड़े स्तर पर पाला जाता है.
मुर्रा नस्ल
मुर्रा नस्ल (Murrah breed) की भैंस को उसकी ज्यादा दूध उत्पादन क्षमता के लिए जाना जाता है. यह नस्ल हरियाणा राज्य के हिसार, रोहतक, जींद और पंजाब के पटियाला तथा नाभा जिलों में बड़ी मात्रा में पाई जाती है. मुर्रा भैंस (Murrah buffalo) प्रतिदिन 18 से 25 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है जिससे पशुपालकों को अच्छा मुनाफा मिलता है.
मुर्रा भैंस की विशेषताएं और लाभ
मुर्रा भैंस को इसकी विशेषताओं के कारण 'काला सोना' (black gold) भी कहा जाता है. इसके सींग जलेबी के आकार के होते हैं जो इसे खास बनाते हैं. इसकी ज्यादा दूध उत्पादन क्षमता और दूध की गुणवत्ता इसे डेयरी किसानों के लिए एक आकर्षक ऑप्शन बनाती है. मुर्रा नस्ल की भैंस एक वर्ष में 2500 से 3000 लीटर तक दूध देती है जिसका उपयोग विभिन्न डेयरी उत्पादों में किया जाता है.
मुर्रा भैंस पालन
मुर्रा भैंस की कीमत उसकी गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता के आधार पर 60,000 रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये (buffalo cost) तक हो सकती है. इस निवेश पर मिलने वाला रिटर्न इसे ग्रामीण किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बनाता है. इसकी उच्च दूध उत्पादन क्षमता के कारण पशुपालक अपने निवेश को जल्दी से वापस पाने में सक्षम होते हैं.
समुदाय और संस्कृति में मुर्रा भैंस का महत्व
मुर्रा भैंस का महत्व केवल आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है यह स्थानीय समुदायों की संस्कृति में भी गहराई से निहित है. इसका पालन करने वाले किसान न केवल खुद को आर्थिक रूप से सशक्त करते हैं बल्कि यह परंपरा और विरासत को भी संजोए रखते हैं. मुर्रा भैंस न केवल दूध उत्पादन में बल्कि पशुपालन की संस्कृति में भी एक केंद्रीय स्थान रखती है.