सरसों की इस खास किस्म से किसान भाई हो जाएंगे मालामाल, एक पेड़ से 10 किलो सरसों
भारतीय गांवों में खेती (Farming) का अपना एक अलग ही महत्व है। यहां हर तरह की फसलों (Crops) की खेती की जाती है, लेकिन कुछ खेती अपनी अनूठी विशेषताओं (Unique Features) के लिए जानी जाती है। आज हम आपको एक ऐसी ही खास सरसों की खेती (Mustard Farming) के बारे में बताएंगे।
जिसकी पैदावार (Yield) और लंबाई दोनों ही असामान्य हैं। इस तरह की अनोखी खेती (Unique Farming) न केवल किसानों के लिए एक नया आयाम (New Dimension) जोड़ती है, बल्कि यह खेती की दुनिया में नवाचार (Innovation) का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी पेश करती है।
ऐसी खेती से न केवल पैदावार बढ़ती है, बल्कि यह किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य (Fair Price) भी प्रदान करती है। इस प्रकार की खेती किसानों को नए प्रयोग (Experiments) करने के लिए प्रेरित करती है और खेती की दिशा में नवीनता (Novelty) लाने का मार्ग प्रशस्त करती है।
पश्चिम बंगाल की विशेष सरसों
पश्चिम बंगाल (West Bengal) का गंगनापुर जिला, जो अपने देबग्राम (Debgram) क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध है, वहां के किसान विकास दास (Vikas Das) ने इस खेती को एक नई पहचान दी है। इस खास तरह की सरसों की खेती के लिए यहां का वातावरण (Environment) बहुत अनुकूल माना जाता है।
बीज की मात्रा और पैदावार
विकास के अनुसार, इस सरसों की खेती के लिए ज्यादा बीज (Seeds) की आवश्यकता नहीं होती। मात्र 100 ग्राम बीज से एक बीघा (Bigha) खेती की जा सकती है। जहां आमतौर पर फसलों की पैदावार हेक्टेयर (Hectare) प्रति 2-3 क्विंटल (Quintal) होती है, वहीं इस विशेष प्रकार की सरसों में 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन (Production) होता है।
किसानों का रूख और मुनाफा
वर्तमान समय में, जब अनेक किसान खेती (Agriculture) छोड़ अन्य कार्यों की ओर अग्रसर हो रहे हैं, विकास दास इस खेती से अच्छा लाभ (Profit) कमा रहे हैं। खाद और अन्य सामग्रियों के बढ़ते दामों (Prices) के बीच, यह खेती किसानों के लिए एक वरदान (Boon) साबित हो रही है।
मौसम पर निर्भरता
विकास ने यह भी बताया कि बंगाल में खेती मुख्य रूप से मौसम (Weather) पर निर्भर करती है। इसलिए, इस खास प्रकार की सरसों की खेती के लिए उपयुक्त मौसम का चयन करना पड़ता है, जो इसे सफल बनाता है।