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अनोखी शादी जिसमें पंडित और सिंदूर की भी नही पड़ती जरुरत, हिंदू एक्ट में भी इस शादी को मिली है मान्यता

समाज में परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ शादी का बंधन एक समय का प्रशासनिक और सामाजिक प्रक्रिया है।
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समाज में परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ शादी का बंधन एक समय का प्रशासनिक और सामाजिक प्रक्रिया है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि क्या होगा अगर आप इस परंपरा के बाहर निकल कर एक शादी के बंधन में बंध जाएं बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाजों के? जानिए इस नई और अनोखी शादी के बारे में जिसे हम सेल्फरेस्पेक्ट मैरिज कहते हैं।

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सेल्फरेस्पेक्ट मैरिज का अर्थ

आत्मसम्मान विवाह या सेल्फरेस्पेक्ट मैरिज में दो लोग बिना किसी परंपरागत रीति-रिवाज के बिना एक दूसरे से विवाह करते हैं। इस विवाह को कानूनी रूप से पंजीकृत कराना आवश्यक होता है जिससे इसका समर्थन और संरक्षण हो सके। इसका मुख्य उद्देश्य है विवाह प्रक्रिया को सरल और रीति-रिवाजों से मुक्त करना।

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आत्मसम्मान विवाह की उत्पत्ति

समाज सुधारक और नेता पेरियार ई.वी. रामास्वामी ने साल 1925 में तमिलनाडु में आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की थी। इसका मुख्य उद्देश्य था जात-पात के भेदभाव को दूर करना और लोअर कास्ट के लोगों को समाज में सम्मान दिलाना। आत्मसम्मान आंदोलन से ही आत्मसम्मान विवाह की शुरुआत हुई और पहला ऐसा विवाह साल 1928 में किया गया। इस तरह के विवाह को अब तक केवल तमिलनाडु में ही मान्यता है।