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अनोखा रेल्वे स्टेशन जहां ट्रेन से उतरकर गार्ड और ड्राइवर बंद करते है फाटक, फाटक से पहले ही रोकनी पड़ती है ट्रेन

भारतीय रेलवे जो अपनी विस्तारित सेवाओं और आधुनिक सुविधाओं के लिए जानी जाती है। भारतीय रेलवे के अंतर्गत कई ऐसी ट्रेनें और स्टेशन हैं जो विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ अपनी गाथा बयां करते हैं।
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भारतीय रेलवे जो अपनी विस्तारित सेवाओं और आधुनिक सुविधाओं के लिए जानी जाती है। भारतीय रेलवे के अंतर्गत कई ऐसी ट्रेनें और स्टेशन हैं जो विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ अपनी गाथा बयां करते हैं। लेकिन इसी स्वर्णिम यात्रा में बिहार के सिवान जिले में स्थित एक रेलवे फाटक ऐसी परंपरा और प्रथा को जीवित रखे हुए है जिसे जानकर आश्चर्य होता है।

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सिवान जिले का यह रेलवे फाटक भारतीय रेलवे के स्वर्णिम दौर में एक अनोखी परंपरा को संजोये हुए है। यह हमें दिखाता है कि कैसे परंपरा और आधुनिकता का संगम भारतीय रेलवे की विशेषता है। हालांकि इस फाटक के लिए एक समाधान खोजना जरूरी है ताकि यात्रियों और रेलवे कर्मचारियों की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित की जा सके।

सिवान जिले का अजूबा रेलवे फाटक

सिवान जिले के महराजगंज अनुमंडल में स्थित रामापाली रेलवे क्रॉसिंग है। जहाँ पर रेलवे फाटक को खोलने और बंद करने का काम ट्रेन के लोको पायलट और गार्ड द्वारा किया जाता है। इस अनोखी प्रथा के पीछे की वजह है इस रेलवे फाटक पर गेटमैन की अनुपस्थिति।

परेशानी का सामना करते यात्री और रेल कर्मचारी

इस सिंगल लाइन रूट पर महाराजगंज-मसरख रेलखंड पर केवल कुछ ही ट्रेनों का परिचालन होता है। इस वजह से इस फाटक पर गेटमैन को तैनात नहीं किया गया है, जिससे ट्रेनों का ड्राइवर और गार्ड ही फाटक को संभालते हैं। यह प्रथा न सिर्फ रेलवे कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त परिश्रम का कारण बनी है बल्कि यह सुरक्षा संबंधी चिंताओं को भी जन्म देती है।

स्थानीय लोगों की मांग और चिंता

स्थानीय निवासियों ने इस फाटक पर गेटमैन की तैनाती के लिए कई बार रेलवे को ज्ञापन सौंपे हैं। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं की गई है। इस विचित्र व्यवस्था से यात्री सुरक्षित तो हैं, लेकिन यह भारतीय रेलवे की आधुनिक तकनीकी क्षमता पर प्रश्न उठाता है।

रेलवे का दृष्टिकोण और भविष्य की संभावनाएं

पूर्वोत्तर रेलवे बढ़ाती मंडल के जनसंपर्क अधिकारी के अनुसार यह व्यवस्था 'वन ट्रेन सिस्टम' के तहत काम करती है। जिसमें एक ट्रेन के गुजर जाने के बाद ही दूसरी ट्रेन को सिग्नल दिया जाता है। इससे दुर्घटनाओं की संभावना कम हो जाती है और सफर सुरक्षित रहता है।