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भारत अपने अलग अलग तरह के पर्यटन के लिए जाना जाता है एडवेंचर से लेकर इको टूरिज्म तक मेडिकल से वाइल्डलाइफ टूरिज्म तक कई प्रकार के पर्यटन के अवसर प्रदान करता है। परन्तु हाल के वर्षों मे भारत एक ऐसे पर्यटन के लिए चर्चित रहा है
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भारत अपने अलग अलग तरह के पर्यटन के लिए जाना जाता है एडवेंचर से लेकर इको टूरिज्म तक मेडिकल से वाइल्डलाइफ टूरिज्म तक कई प्रकार के पर्यटन के अवसर प्रदान करता है। परन्तु हाल के वर्षों मे भारत एक ऐसे पर्यटन के लिए चर्चित रहा है जो सामान्यतः चर्चा का विषय नहीं बनता।

लद्दाख के 'शुद्ध आर्यों' के गांव

लद्दाख की राजधानी लेह से 163 किमी दूर स्थित बियामा, गारकोन, दारचिक, दाह और हानू गांव ब्रोकपा समुदाय के लिए जाने जाते हैं। ये समुदाय अपने आप को 'शुद्ध आर्य' मानते हैं। यह दावा उन्हें नस्लीय श्रेष्ठता के भाव से ग्रसित करता है और वे इसे गर्व से स्वीकार करते हैं।

आर्यों की शुद्धता

'शुद्ध आर्यों' का दावा नस्लीय सिद्धांतों से उभरा जिसे नाज़ी युग में 'मास्टर रेस' के नाम से जाना गया। इसी दावे के तहत जर्मनी में यहूदियों का नरसंहार हुआ था। ब्रोकपा समुदाय की इस कहानी को उनके लंबे कद, गोरे रंग, नीली आंखों, और मजबूत जबड़ों के साथ जोड़कर देखा जाता है।

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ब्रोकपा समुदाय

ब्रोकपा मुख्य रूप से बौद्ध धर्म का पालन करने के बावजूद देवी-देवताओं में विश्वास रखते हैं। वे आग की पूजा करते हैं और बलि प्रथा का पालन करते हैं जिसमें बकरी को गाय से अधिक पवित्र माना जाता है।

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प्रेगनेंसी टूरिज्म

इंटरनेट के प्रसार के बाद जर्मन महिलाओं का इन गावों में आने का किस्सा चर्चित हुआ जो 'शुद्ध आर्य बीज' की तलाश में आती हैं। 2007 में रिलीज हुई संजीव सिवन की डॉक्यूमेंट्री "Achtung Baby: In Search of Purity" में इस प्रेगनेंसी टूरिज्म की परतें खुलीं।

ब्रोकपा और वैज्ञानिक प्रमाण

ब्रोकपा समुदाय के 'शुद्ध आर्य' होने का दावा किसी भी वैज्ञानिक प्रमाण या डीएनए जांच से समर्थित नहीं है। उनका यह दावा मात्र लोककथाओं, मिथकों, और विरासत में मिली कहानियों पर आधारित है।