लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों को कब मिलता है पति पत्नी का दर्जा, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के कर दिया साफ
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय (निर्णय) में कहा है कि यदि कोई पुरुष और महिला लंबे समय तक सहजीवन (सहजीवन) में रहते हैं तो उन्हें शादीशुदा माना जाएगा। इसका अर्थ है कि जो जोड़े पति-पत्नी की तरह वर्षों से एक साथ रह रहे हैं उन्हें कानूनी तौर पर विवाहित माना जाएगा। इस प्रकार के मामलों में शादी को नकारने वाले व्यक्ति पर यह साबित करने का दायित्व (दायित्व) होगा कि उनके बीच विवाह नहीं हुआ है।
सहजीवन संबंधों के बच्चों को मिलेगा संपत्ति में हक
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जो बच्चे बिना शादी के सहजीवन में रह रहे जोड़ों से जन्मे हैं उन्हें भी परिवार की संपत्ति (संपत्ति) में हक होगा। इससे उन बच्चों के अधिकारों की रक्षा होगी जिन्हें पहले नाजायज (नाजायज) माना जाता था।
न्यायिक फैसलों का आधार
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले की समीक्षा करते हुए पाया कि दस्तावेजी साक्ष्य से यह सिद्ध होता है कि संबंधित पुरुष और महिला पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे थे। इस निर्णय में पहले के जजमेंट्स का हवाला दिया गया जिससे यह सिद्धांत स्थापित होता है कि सहजीवन में रहने वाले व्यक्तियों को विवाहित माना जाता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की भूमिका
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा-114 के तहत, शादी को नकारने वाले की यह जिम्मेदारी होती है कि वह साबित करे कि विवाह नहीं हुआ था। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पहले भी इस प्रकार के मामलों में अपनी व्यवस्था दे चुके हैं।
गुजारा भत्ता का अधिकार
दिल्ली हाई कोर्ट ने 15 जून 2019 को एक फैसले में कहा था कि यदि एक कपल पति-पत्नी की तरह सालों से साथ रह रहे हैं, तो उन्हें शादीशुदा माना जाएगा और महिला पत्नी की तरह गुजारा भत्ता (Maintenance) मांग सकती है।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में व्यवस्था दी है कि यदि कोई कपल लंबे समय तक शादीशुदा कपल की तरह रहते हैं, तो गुजारा भत्ता के दावे के समय उन्हें पति-पत्नी माना जाएगा। मद्रास हाई कोर्ट ने भी एक मामले में समान निर्णय दिया था जिसमें शादी के सबूत नहीं दे पाने वाली महिला को भी गुजारा भत्ता का अधिकार दिया गया था।