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जब ब्रांड सेम है तो अलग-अलग राज्यों में शराब की अलग कीमतें क्यों, जान लो इसके पीछे का असली कारण

जैसे की आप जानते है की भारत के हर शहर में शराब की दुकान है। यदि कोई व्यक्ति एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रेवल करता है तो वह भी वहां शराब खरीद सकता है। लेकिन क्या होता है कि एक राज्य में एक हजार रुपये की....
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Liquor Price Difference (1)
   

जैसे की आप जानते है की भारत के हर शहर में शराब की दुकान है। यदि कोई व्यक्ति एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रेवल करता है तो वह भी वहां शराब खरीद सकता है। लेकिन क्या होता है कि एक राज्य में एक हजार रुपये की शराब की बोतल दूसरे राज्य में एक हजार रुपये की होती है?

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कभी-कभी वह किसी राज्य में 900 रुपये भी मिल जाता है। यह प्रत्येक राज्य पर निर्भर करता है कि वहां शराब की लागत अधिक है या कम है। हम आज आपको बताने जा रहे हैं कि शराब की लागत क्यों बदलती है और किसी राज्य में सेम ब्रांड की बोतल अलग मूल्य पर कैसे मिलती है।

हर राज्यों मे अलग अलग कीमत क्यों होती है

यही कारण है कि शराब जीएसटी से बाहर है। ठीक है शराब की टैक्स व्यवस्था पेट्रोल डीजल आदि पर है। ऐसे में देश भर में शराब पर लगने वाले करों की दरें सरकार की वन-राज्य-वन टैक्स नीति से अलग हैं। विभिन्न राज्यों और नगरों में पेट्रोल की कीमतों में अंतर है। शराब की कीमतों में भी अंतर है।

इससे हर राज्य शराब पर टैक्स लगाता है। राज्य सरकार शराब पर टैक्स निर्धारित करती है और फिर शहर की अर्थव्यवस्था के अनुसार परिवहन और अन्य खर्चों को निर्धारित करती है। राज्य सरकार अपनी शराब नीति बनाती है जो शराब पर लगने वाले टैक्स निर्धारित करती है। 

एक बोतल पर कितना लगता है टैक्स 

अब आपको शराब की एक बोतल पर कितना टैक्स लगता है बताते हैं। वास्तव में शराब की बोतल बनाने में कई खर्च आते हैं। राज्य सरकार एक्साइज ड्यूटी नामक टैक्स वसूलती है। इसके अलावा शराब पर लेबल रजिस्ट्रेशन ट्रांसपोर्ट कर और विशेष सेस जैसे चार्ज लगाए जाते हैं।

शिक्षा गाय आदि सेस लगाए जाते हैं। फिर विभिन्न शराबों पर टैक्स अलग-अलग है जैसे भारतीय मेड पर कम और विदेशी लिकर पर अधिक। अगर आप 1000 रुपये की शराब खरीदते हैं तो 350 से 500 रुपये के पैसे दुकानदार या शराब बनाने वाली कंपनी को नहीं जाते बल्कि सरकार के खजाने में जाते हैं।

उस राज्य में शराब की एक बोतल की कीमत सरकारी टैक्स दुकानदार की आय और ट्रैवल की लागत से निर्धारित होती है। इसलिए विभिन्न राज्यों में इसकी लागत में अंतर देखने को मिलता है।