पायलट कई बार हवा में ही जहाज का पेट्रोल क्यों निकाल देते है, इस मजबूरी के चलते पायलट को करना पड़ता है ये काम
हवाई यात्रा के दौरान कई बार ऐसी आपात स्थितियाँ आ जाती हैं। जब पायलट के सामने विमान का तेल हवा में गिराने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता। इस प्रक्रिया को 'फ्यूल डंपिंग' कहा जाता है जो कि एक दुर्लभ घटना है। आइए जानते हैं कि इस प्रक्रिया के पीछे क्या कारण होते हैं और यह कैसे काम करती है।
आज हम आपको हवाई यात्रा की एक ऐसी विशेष परिस्थिति के बारे में बताएंगे जिसमें विमान को हवा में तेल गिराने की आवश्यकता पड़ती है। 'फ्यूल डंपिंग' न केवल विमान और उसके यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है बल्कि यह आपात स्थितियों में एक महत्वपूर्ण और जीवन रक्षक कदम साबित होती है।
इमरजेंसी स्थिति फ्यूल डंपिंग
इस प्रक्रिया को समझने के लिए एक वास्तविक उदाहरण की ओर रुख करते हैं। 23 मार्च 2018 को शंघाई से न्यू यॉर्क के लिए उड़ान भरते समय एक विमान में एक 60 वर्षीय महिला यात्री की अचानक तबियत बिगड़ गई।
उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि पायलट के पास इमरजेंसी लैंडिंग के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसके लिए विमान के 65 हजार पाउंड गैसोलीन को हवा में गिराना आवश्यक हो गया। इस फैसले से महिला यात्री की जान बचाई जा सकी।
फ्यूल डंपिंग का वैज्ञानिक कारण
फ्यूल डंपिंग विमान के वजन को कम करने के लिए की जाती है जिससे इमरजेंसी लैंडिंग की प्रक्रिया सरल हो सके। विमान का तेल वायुमंडल में गिराया जाने पर वाष्पित हो जाता है और धरती पर पहुँचने से पहले ही धुआँ बनकर उड़ जाता है। इस प्रक्रिया को 'फ्यूल जेटिसन' कहा जाता है और यह तकनीकी रूप से विमान के सुरक्षित लैंडिंग में मदद करता है।
इमरजेंसी लैंडिंग कब और क्यों?
विमान में जब कोई मेडिकल इमरजेंसी आती है या किसी यात्री की जान को खतरा होता है तब पायलट फ्यूल डंपिंग का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय विमान के सुरक्षित लैंडिंग और यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए लिया जाता है। फ्यूल डंपिंग अत्यंत गंभीर स्थितियों में ही की जाती है जब कि अन्य सभी विकल्पों को आजमाया जा चुका होता है।