रेल इंजन में तो टॉयलेट की व्यवस्था क्यों नही होती, महिला ड्राइवर्स को झेलनी पड़ती है ये समस्या
भारतीय रेलवे जो दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों में से एक है, यात्रियों को लंबी दूरी तय करने की सुविधा प्रदान करता है। ट्रेनों में खाने-पीने और शौचालय जैसी आवश्यक सुविधाओं के साथ यात्री आराम से अपनी यात्रा कर सकते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेन के ड्राइवरों के लिए इंजन में ऐसी कोई सुविधा क्यों नहीं है?
भारतीय रेलवे के लोको पायलट्स के सामने आने वाली इन समस्याओं का समाधान तलाशना न केवल उनके लिए बल्कि भारतीय रेलवे की दक्षता के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। एक सुरक्षित और सुविधाजनक कार्य वातावरण न केवल उनके काम की दक्षता बढ़ाएगा बल्कि उन्हें अधिक संतुष्ट और प्रेरित भी करेगा।
लोको पायलट की चुनौतियां
भारतीय रेलवे के इंजनों में शौचालय और खाने-पीने की सुविधाएं न होने की वजह से लोको पायलट्स को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। महिला लोको पायलट्स के लिए ये चुनौतियां और भी कठिन हो जाती हैं, जिन्हें 10 से 12 घंटे तक बिना शौचालय के अपनी ड्यूटी निभानी पड़ती है।
सुविधाओं का अभाव
जहां यात्री डिब्बों में बायो टॉयलेट जैसी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। वहीं इंजन में ऐसी किसी भी प्रकार की सुविधा का अभाव लोको पायलट्स को काफी मुश्किल में डालता है। इसके चलते कई महिला लोको पायलट्स ऑफिस में काम करना अधिक बेहतर समझती हैं।
महिला लोको पायलट्स की दुर्दशा
विशेष रूप से महिला लोको पायलट्स को शारीरिक जरूरतों और पीरियड्स के दौरान और भी अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं के कारण कई महिलाएं लोको पायलट की नौकरी छोड़ देती हैं या फिर ऑफिस वर्क करना पसंद करती हैं।
समाधान की दिशा में
हालांकि रेलवे विभाग द्वारा कुछ ट्रेनों में बायो टॉयलेट की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। लेकिन इंजन में ऐसी सुविधाओं का होना अभी भी एक सपना ही है। लोको पायलट्स के लिए आवश्यक सुविधाओं का प्रावधान उनकी कार्य दक्षता और संतुष्टि को बढ़ा सकता है।
विदेशों में व्यवस्था
ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में लोको पायलट्स के लिए हर चार से पांच घंटे में ब्रेक और सुविधाओं की बेहतर व्यवस्था है। भारतीय रेलवे को भी इस दिशा में प्रगति करते हुए अपने लोको पायलट्स के लिए बेहतर सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए।