वोट डालने के बाद अंगुली पर लगी स्याही जल्दी से मिटती क्यों नही है, असली वजह भी है बेहद मजेदार
भारतीय चुनावों (Elections) में वोटिंग के समय उंगली पर लगाई जाने वाली नीली स्याही (Indelible Ink) न केवल मतदान (Voting) की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है बल्कि यह लोकतंत्र (Democracy) में एक व्यक्ति के मताधिकार (Right to Vote) का प्रतीक भी है। आइए जानते हैं कि यह स्याही क्यों और कैसे लगाई जाती है और इसकी विशेषताएं क्या हैं।
चुनावी स्याही का महत्व और उद्देश्य
चुनावी स्याही (Election Ink) का मुख्य उद्देश्य धोखाधड़ी (Fraud) को रोकना है। यह सुनिश्चित करती है कि कोई मतदाता (Voter) दोबारा वोट न कर सके। इस स्याही का उपयोग हर चुनाव के दौरान किया जाता है, चाहे वह लोकसभा (Lok Sabha), विधानसभा (Vidhan Sabha), नगर निकाय (Municipal) या सहकारी समितियों (Cooperative Societies) के चुनाव हों।
स्याही की स्थायित्व और संरचना
इस चुनावी स्याही में सिल्वर नाइट्रेट (Silver Nitrate) का प्रयोग होता है, जो इसे आसानी से मिटने से रोकता है। यह कम से कम 72 घंटे तक उंगली पर बनी रहती है और पानी के संपर्क में आने पर इसका रंग काला हो जाता है, जो लंबे समय तक रहता है।
भारतीय चुनावी स्याही बनाने का प्रोसेस
भारत में यह स्याही मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (Mysore Paints and Varnish Limited) द्वारा बनाई जाती है। 1962 के चुनाव (1962 Elections) से इसका प्रयोग शुरू किया गया था, और भारत के पहले चुनाव आयुक्त (Election Commissioner) सुकुमार सेन के सुझाव पर इसे चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया गया था।
चुनावी स्याही की लागत
चुनावी स्याही की लागत (Cost) अपेक्षाकृत कम होती है। एक बोतल स्याही की कीमत लगभग 127 रुपये होती है, जिसमें लगभग 10 एमएल स्याही होती है। एक लीटर स्याही की कीमत 12,700 रुपये है, जो इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए एक उचित मूल्य है।