इन जगहों पर साल के इस दिन लगता है भूतों का मेला, लोग मानते है इस चीज का आशीर्वाद
नरक चतुर्दशी जिसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण उत्सव है। यह दिवाली के पांच दिवसीय उत्सवों में से एक है और इसे विशेष रूप से यमराज की पूजा के लिए मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दीप जलाने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और व्यक्ति के पापों का नाश होता है।
नरक चतुर्दशी का त्योहार भारत की विविध सांस्कृतिक परंपराओं का एक संगम है जो न केवल हमारी धार्मिक आस्थाओं को दर्शाता है बल्कि इसमें सामाजिक समारोहों की भी झलक मिलती है। इस पर्व के माध्यम से हमारे देश की अनेकता में एकता की भावना प्रकट होती है जो हमें अपनी जड़ों के प्रति और अधिक सजग और संवेदनशील बनाती है।
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भूत उत्सव के रूप में नरक चतुर्दशी
भारत के कुछ हिस्सों में नरक चतुर्दशी को भूत उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह अनूठा उत्सव भूतों और आत्माओं को समर्पित होता है जहां लोग विभिन्न अनुष्ठान करते हैं। इसमें अघोरी और तांत्रिक क्रियाएं भी शामिल होती हैं जिनका उद्देश्य अलौकिक शक्तियों को प्रसन्न करना होता है।
विशिष्ट स्थलों पर नरक चतुर्दशी का आयोजन
अयोध्या में जो भगवान राम की पुनरावृत्ति की भूमि है नरक चतुर्दशी की रात को विशेष रूप से सरयू नदी के तट पर दीपों की एक श्रृंखला जलाई जाती है। यहां तांत्रिक और अघोरी समूह अपनी रहस्यमयी क्रियाओं को संपन्न करते हैं।
गुजरात में इस दिन को और भी अनोखे ढंग से मनाया जाता है जहां लोग दीपक की लौ से काजल बनाकर उसे आंखों में लगाते हैं जिसे वे नए साल की खुशी में अपनाते हैं। इसे खुशियों और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
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बंगाल की नरक चतुर्दशी
पश्चिम बंगाल में नरक चतुर्दशी को काली चौदस के नाम से जाना जाता है जहां यह मां काली के पूजन के साथ जुड़ा हुआ है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर और कालीघाट में मां काली की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है और रात में अघोरियों द्वारा विशेष तांत्रिक अनुष्ठान किए जाते हैं।