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Mugal Emperor: मांस या मछली नहीं बल्कि इन चीजों को खाने के शौकीन थे मुगल बादशाह, अकेली भूख ही नही बल्कि शरीर को फौलाद बना देता था शाही भोजन

मुगलों के खानपान को लेकर ज्यादातर लोगों की धारणा है कि उन्हें गोश्त, चिकन और मछली से विशेष लगाव था। इतिहास में दर्ज किस्से बताते हैं कि मुगल सल्तनत के बादशाहों को शाकाहारी और कई भारतीय व्यंजनों से विशेष लगाव था।
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mughal royal food
   

मुगलों के खानपान को लेकर ज्यादातर लोगों की धारणा है कि उन्हें गोश्त, चिकन और मछली से विशेष लगाव था। इतिहास में दर्ज किस्से बताते हैं कि मुगल सल्तनत के बादशाहों को शाकाहारी और कई भारतीय व्यंजनों से विशेष लगाव था।

कई बादशाह तो ऐसे भी हुए जिन्होंने धीरे-धीरे मांसहार से दूरी भी बना ली। दिलचस्प बात है कि अकबर को शिकार करना बेहद पसंद था, उन्हें गोश्त बिल्कुल भी नहीं पसंद था। मुगलों के दौर में खाने को लेकर कई तरह के प्रयोग किए गए।

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उन प्रयोगों के कारण देश को कई ऐसे व्यंजन मिले जो दुनियाभर में फेमस हुए। फूड एक्सपर्ट और इतिहासकार सलमा हुसैन ने कई किताबें लिखीं जिसमें मुगलों के दौर के खानपान का जिक्र किया गया है। जानिए, मुगल बादशाह की शाही रसोई में कौन-कौन से व्यंजन बनते हैं और उन्हें क्या-क्या पसंद था।

साग-सब्जियों से कम नहीं था लगाव

अकबर, जहांगीर और औरंगजेब के बीच अगर एक समानता तलाशी जाए तो वो यही थी कि तीनों को ही साग-सब्जियां खास पसंद थीं। मुगलों के दौर में यह कहा जाता था कि शारीरिक रूप से खुद को मजबूत रखने के लिए गोश्त जरूरी था।

यही वजह थी कि बादशाह के भोजन में कभी-कभार गोश्त नजर आ जाता था। मुगलों के शुरुआती दौर में शुक्रवार को गोश्त से विशेषतौर पर दूरी बनाई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसकी जगह रविवार ने ले ली।

तीन हिस्से में बंटी मुगलों की रसोई

अकबर के शासन की हर बात को इतिहास में दर्ज करने वाले अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा, बादशाह की शाही रसोई तीन हिस्सों में बंटी हुई थी। पहले हिस्से में वो खाना बनता था जिसमें गोश्त यानी मांस को बिल्कुल भी शामिल नहीं किया जाता था।

इसे सुफियाना भाेजन कहते थे। दूसरे हिस्से में ऐसा भोजन बनता था, जिसमें अनाज के साथ भोजन को बनाया जाता था। वहीं, तीसरे हिस्से में घी और मसाले के साथ मांस को पकाया जाता था।

इससे पता चलता है कि मुगलों को खाने में दाल, सब्जियां और पुलाव विशेष पसंद रहा है। रसोई में इस तरह का भोजन बताता है कि शाकहार को लेकर उनका रवैया कितना सकारात्मक था।

जब भोजन में प्रयोग शुरू हुए

शाकाहारी भोजन को लेकर मुगलों का रवैया देखते हुए उनके बावर्चियों ने कई तरह के प्रयोग शुरू किए। सब्जियों को लेकर तरह-तरह के पकवान बनने लगे। सब्जी और पुलाव के साथ प्रयोग शुरू हुए, जिसमें मांस का प्रयोग कतई नहीं किया जाता था। ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि औरंगजेब को खिचड़ी से विशेष लगाव था।

बेटे की लिखी चिट्ठी में औरंगजेब ने खासतौर पर सुलैमान रसोइए की मांग की, जिसे खिचड़ी और बिरयानी में महारथ हासिल थी। ताजे फल तो औरंगजेब की कमजोरी थे। उसे आम बहुत पसंद थे। पनीर कोफ्ता और खाने में फलों का इस्तेमाल औरंगजेब की देन कहा जाता है।