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जब संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत का आँखो देखा हाल बता दिया तो उसके बाद क्या हुआ, कहां गई संजय की दिव्य दृष्टि

हम लोग हमेशा महाभारत के संजय की चर्चा करते हैं, जिन्हें उस युद्ध का सजीव वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाने के लिए विशेष दिव्य दृष्टि मिली थी. आखिर कौन थे संजय. महाभारत से लेकर आजतक वह क्यों अमर हैं.
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हम लोग हमेशा महाभारत के संजय की चर्चा करते हैं, जिन्हें उस युद्ध का सजीव वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाने के लिए विशेष दिव्य दृष्टि मिली थी. आखिर कौन थे संजय. महाभारत से लेकर आजतक वह क्यों अमर हैं. उस युद्ध के बाद उनका क्या हुआ. वैसे आपको बता दें कि वो जाति से बुनकर और धृतराष्ट्र के मंत्री भी थे.

धृतराष्ट्र को वह प्रिय थे लेकिन संजय नेकनीयता के कारण पांडवों के प्रति सहानुभूति रखते थे. संजय महर्षि वेद व्यास के शिष्य थे. वो धृतराष्ट्र की राजसभा में शामिल थे. राजा धृतराष्ट्र उनका सम्मान करते थे. संजय विद्वान गावाल्गण नामक सूत के पुत्र थे और जाति से बुनकर.

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हमारे पौराणिक ग्रंथ और महाभारत की कहानियां बताती हैं कि संजय बेहद विनम्र और धार्मिक स्वाभाव के थे. देश के पहली और एकमात्र देसी एनसाइक्लोपीडिया ‘भारत कोश’ में भी संजय के बारे में विस्तार से बताया गया है. संजय का अर्थ होता है विजय. उनका पूरा नाम संजय गावलगण था.

कहते हैं कि जब महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में चल रहा था तब संजय हस्तिनापुर में बैठकर धृतराष्ट्र को युद्ध का आंखों देखा हाल सुना रहे थे. महाभारत के युद्ध में संजय ने जिस तरह सारे युद्ध का बखान किया. युद्ध की संरचना और बारीकियों के साथ बताने के साथ तब ग्रहों की स्थितियां, प्रभाव के बारे में बताया, उससे उनका चरित्र बेहद बुद्धिमान और सुलझे हुए शख्स की तरह उभरता है.

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खरी-खरी बातें करते थे

संजय को धृतराष्ट्र ने महाभारत युद्ध से ठीक पहले पांडवों के पास बातचीत करने के लिए भेजा था. वहां से आकर उन्होंने धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का संदेश सुनाया था. वह श्रीकृष्ण के परमभक्त थे. बेशक वो धृतराष्ट्र के मंत्री थे. इसके बाद भी पाण्डवों के प्रति सहानुभुति रखते थे. वह भी धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों अधर्म से रोकने के लिये कड़े से कड़े वचन कहने में हिचकते नहीं थे.

अक्सर धृतराष्ट्र उनकी बातों पर क्षुब्ध भी हो जाते थे

संजय हमेशा राजा को समय-समय पर सलाह देते रहते थे. जब पांडव दूसरी बार जुआ में हारकर 13 साल के लिए वनवास में गए तो संजय ने धृतराष्ट्र को चेतावनी दी थी कि ‘हे राजन! कुरु वंश का समूल नाश तो पक्का है लेकिन साथ में निरीह प्रजा भी नाहक मारी जाएगी. हालांकि धृतराष्ट्र उनकी स्पष्टवादिता पर अक्सर क्षुब्ध भी हो जाते थे.

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महल में बैठकर धृतराष्ट्र को सुनाते थे युद्ध का हाल

जब ये पक्का हो गया कि युद्ध को टाला नहीं जा सकता तब महर्षि वेदव्यास ने  संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी. ताकि वो युद्ध-क्षेत्र की सारी बातों को महल में बैठकर ही देख लें और उसका हाल धृतराष्ट्र को सुनाएं. इसके बाद संजय ने नेत्रहीन धृतराष्ट्र को महाभारत-युद्ध का हर अंश सुनाया.

ये भी कहा जा सकता है कि वह हमारे देश के सबसे पहले कमेंटेटर भी थे. युद्ध के बाद  महर्षि व्यास की दी हुई दिव्य दृष्टि भी नष्ट हो गई. श्री कृष्ण का विराट स्वरूप, जो केवल अर्जुन को ही दिखाई दे रहा था, संजय ने भी उसे दिव्य दृष्टि से देखा.

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ऐसा कैसे हो गया था

संजय को दिव्य दृष्टि मिलने का कोई वैज्ञानिक आधार महाभारत या बाद के ग्रंथों में नहीं मिलता. इसे महर्षि वेदव्यास का चमत्कार ही माना जाता है. दरअसल वह वेद व्यास के शिष्य थे और उन पर अगाध आस्था रखते थे. साथ ही महाराजा धृतराष्ट्र के प्रति समर्पित थे.

हालांकि वह धार्मिक थे, लिहाजा धृतराष्ट्र के मन्त्री होने पर भी पांडवों के पक्ष को सही मानते थे. कौरवों के लिए कड़े-से-कड़े वचन कहने में भी संजय हिचकते नहीं थे. संजय को उन्हें दिव्य दृष्टि कैसे मिली और कैसे खत्म हो गई, इसे लेकर कालांतर में लिखी गई कई टीकाओं में कुछ खास जिक्र नहीं किया गया.

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युद्ध के बाद संन्यास ले लिया

महाभारत युद्ध के बाद कई सालों तक संजय युधिष्ठर के राज्य में रहे. इसके बाद वो धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के साथ संन्यास लेकर चले गए. पौराणिक ग्रंथ कहते हैं कि वो धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद हिमालय चले गए.

अर्जुन के बालसखा भी थे

अर्जुन के साथ संजय की लड़कपन से मित्रता थी. इसी से अर्जुन के उस अन्‍त:पुर में, जहां नकुल-सहदेव और अभिमन्यु का भी प्रवेश निषिद्ध था, संजय को प्रवेश करने का अधिकार था.