Indian Railway: एक ही पटरी पर चल रही 2 ट्रेनों के बीच कितनी होती है दूरी, जाने किस तकनीक का इस्तेमाल करता है रेल्वे
भारतीय रेलवे प्रतिदिन करोड़ों यात्रियों और अनेकों टन सामान का आवागमन सुनिश्चित करता है। इस भारी भरकम जिम्मेदारी के साथ जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करना और निर्विघ्न ट्रेन संचालन इसकी प्राथमिक प्राथमिकताएं हैं। रेलवे के संचालन में दर्जनों विशेष तकनीकें और प्रणालियाँ लगी होती हैं जिनमें से दो मुख्य प्रणालियाँ हैं।
जिनका उपयोग ट्रेनों के बीच सुरक्षित दूरी बनाए रखने के लिए किया जाता है। भारतीय रेलवे द्वारा अपनाई गई ये दो महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रणालियाँ न केवल यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करती हैं बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि कैसे प्रौद्योगिकी का समझदारी से उपयोग करके परिवहन की व्यवस्था को और अधिक कुशल बनाया जा सकता है।
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एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम की व्यवस्था
भारतीय रेलवे में ब्रिटिश काल से प्रचलित एब्सोल्यूट ब्लॉक सिस्टम अभी भी महत्वपूर्ण है। इस प्रणाली के अंतर्गत दो ट्रेनों के बीच कम से कम 6 से 8 किलोमीटर की दूरी अनिवार्य रूप से रखी जाती है।
यह सुनिश्चित किया जाता है कि एक ट्रेन जब तक अगले स्टेशन को पार नहीं कर लेती तब तक पिछले स्टेशन से दूसरी ट्रेन को नहीं भेजा जाता। यह व्यवस्था ट्रेन संचालन को सुरक्षित बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ऑटोमेटिक ब्लॉक वर्किंग की आधुनिकता
ऑटोमेटिक ब्लॉक वर्किंग प्रणाली आधुनिक तकनीक पर आधारित है जिसमें पटरियों के किनारे लगे बॉक्स द्वारा स्वचालित सिग्नल संचालित होते हैं। यह सिस्टम ट्रेनों के बीच की दूरी को नियंत्रित करते हुए उन्हें सुरक्षित गति से चलने की अनुमति देता है।
जैसे ही ट्रेन एक सिग्नल को पार करती है वह सिग्नल लाल हो जाता है और जैसे ही ट्रेन अगले सिग्नल को पार करती है पीछे वाला सिग्नल पीला हो जाता है और इसी क्रम में यह प्रणाली कार्य करती है।
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प्रणाली का सीमित अनुप्रयोग
हालांकि ये आधुनिक प्रणालियां बेहद कारगर हैं फिर भी इनका प्रयोग भारतीय रेलवे के सभी हिस्सों में नहीं हो पाता है। कुछ क्षेत्रों में अभी भी पारंपरिक तरीकों से ट्रेन संचालन होता है जिससे कई बार देरी और अन्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
ऑटोमेटिक ब्लॉक वर्किंग प्रणाली को यदि पूरे रेलवे नेटवर्क में लागू किया जा सके तो यह ट्रेन संचालन को और भी सुचारु और समयनिष्ठ बना सकता है।