दूसरे के करने पर होती है भयंकर गुदगुदी पर खुद करने पर नही होता कोई असर, जाने क्या है असली कारण

हम सभी को गुदगुदी लगती है किसी को कम तो किसी को अधिक लगता है। लेकिन कभी-कभी सोचा है कि हम सिर्फ दूसरों के काम करने पर खुश क्यों होते हैं।
 

हम सभी को गुदगुदी लगती है किसी को कम तो किसी को अधिक लगता है। लेकिन कभी-कभी सोचा है कि हम सिर्फ दूसरों के काम करने पर खुश क्यों होते हैं। हम अपने आप को गुदगुदाने की कितना भी कोशिश करें, हंसी नहीं आती। ऐसा होने का कारण क्या है? इस रहस्य को सुलझाने के लिए दुनिया भर में कई अध्ययन किए गए हैं। परीक्षणों का उद्देश्य था कि इंसानी दिमाग अपने आप और दूसरों को परेशान करने पर किस तरह काम करता है?

वैज्ञानिकों ने कहा कि आपको अपने हाथों से खुद को गुदगुदाने की कोशिश करनी चाहिए अगर आप इंसानी दिमाग के रहस्यों को जानना चाहते हैं। ऐसा करने से कोई अहसास नहीं होगा। अब किसी दूसरे से पूछें कि वह आपको धन्यवाद दे। आपको अपनी ओर बढ़ते हुए हाथों को देखकर हंसी आने लगेगी। यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन की सारा जेन ब्लैकमोर ने ध्वनि की गति से अपने और दूसरों के हाथों में अंतर निर्धारित किया।

खुद मचाने पर क्‍यों नहीं लगती है गुदगुदी?

अध्ययन ने पाया कि गुदगुदी का अहसास दिमाग के दो हिस्सों के सक्रिय होने पर होता है। सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स, पहला, स्पर्श को समझता है। एंटीरियर सिंगुलेट कॉर्टेक्स, दूसरा भाग, खुशी या दिलचस्प अहसास को समझता है।

जब हम खुद को गुदगुदी करने की कोशिश करते हैं, तो मस्तिष्क का सेरिबेलम हिस्सा इसका पहले ही अंदाजा लगा लेता है और कॉर्टेक्स को संकेत देता है। ऐसे में कॉर्टेक्स पहले ही गुदगुदी के लिए सचेत हो जाता है। नतीजतन, हमें स्वयं करने पर कोई परेशानी नहीं होती।

चूहों की तरह काम करता है हमारा दिमाग

जर्मनी की हुमबोल्ट यूनिवर्सिटी ने चूहों को दोनों गुदगुदी के बीच अंतर का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया। इस अध्ययन ने पाया कि चूहे भी इंसानों की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। जब चूहों को अपने आप को गुदगुदी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो उनके मस्तिष्क का वह भाग काम नहीं करता, जो हंसी को जन्म देता है।

वहीं, चूहों ने शोधकर्ताओं की गुदगुदी पर प्रतिक्रिया दी। शोधकर्ताओं का कहना है कि जब हम खुद को परेशान करते हैं, तो हमारे दिमाग को कोई नुकसान नहीं होने का भरोसा होता है। इसलिए हमारे सेंसरी ऑर्गन अलर्ट नहीं होते और कोई प्रतिक्रिया नहीं देते। इसके विपरीत, दूसरों को गुदगुदाने पर हमारा दिमाग तुरंत अलर्ट हो जाता है, और हंसी रोकने की कोशिश हमारी प्रतिक्रिया है।

गुदगुदी को लेकर क्‍या कहता है विज्ञान?

वैज्ञानिकों का कहना है कि गुदगुदी दो प्रकार की होती है। पहली निसमेसिस में शरीर को हल्के से स्पर्श करने से उस स्थान की बाहरी त्वचा एपिडर्मिस नसों के माध्यम से दिमाग को सूचना देती है। फिर हमें हल्की खुजलाहट लगती है। पेट, बगल या गले को छूने से दूसरा गार्गालेसिस होता है, जिसमें हम जोर से हंसने लगते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का एक अलग हिस्सा गुदगुदी के प्रति संवेदनशील है। यद्यपि, हड्डी से कम-से-कम घिरे स्थानों, जैसे पेट और पैर के तलवे, में आम तौर पर गुदगुदी होती है।

सजा देने के लिए की जाती की गुदगुदी

हम अक्सर अपने करीबी लोगों को हंसाने और हंसाने के लिए गुदगुदी करते हैं। लेकिन, आपने कभी सोचा है कि सजा देने के लिए भी दबाव डाला जाता था? ये भी प्रताड़ना का एक साधन था। Британी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, "चाइनीज टिकल" एक प्रकार का टॉर्चर है।

लेख में कहा गया है कि चीन के हेन शासकों के शासनकाल में बड़े पदों पर बैठे लोगों को छोटी-छोटी गलतियों के लिए सजा दी गई। उन्हें गुदगुदी करके खूब हंसाया जाता था, जब तक कि उन्हें सांस नहीं आती थी। ये एक संक्षिप्त सजा थी।

मरने तक की जाती थी दोषी को गुदगुदी

दोषी को प्राचीन रोम में गुदगुदी की सजा दी जाती थी। ये सजा बहुत कष्टप्रद थी। दोषी के पैरों को सजा में नमक के पानी में डुबोया गया। इसके बाद बकरी ने पैर धोए। तब तक बकरी अपने पैरों को चाटती रही, जब तक उसे चोट नहीं लगी। जर्मन सेना ने दूसरे विश्वयुद्ध में एक नाजी कैंप में कई लोगों को गुदगुदी की सजा दी, जब तक कि वे मर गए। जापान में भी क्रिमिनल कोड के दायरे में नहीं आने वाली गलतियों के लिए "मर्सीलेस टिकलिंग" की सजा दी गई।