भारत में चलती है ये ट्रेन जिसमें सफर करने के लिए नही लगता कोई टिकट, बिना पैसे दिए भी ले सकते है सफर का मजा
ट्रेन का सफर और वो भी फ्री में? आप यकीन नहीं कर पा रहे होंगे, लेकिन ये सच है। बस हो कोई दूसरा पब्लिक ट्रांसपोर्ट, उसमें सफर करने के लिए किराया तो देना ही पड़ता है, यही आपने और हमने अब तक सुना-जाना है। लेकिन जिस ट्रेन की हम बात कर रहे हैं उसमें कोई टिकट नहीं लेनी पड़ती।
जब टिकट ही नहीं है तो किराया भी नहीं है। वैसे तो ट्रेन में बिना टिकट सफर करने पर टीटी आप पर जुर्माना लगा सकता है, लेकिन इस रेल में टीटी भी नहीं होता है। अब आप यह जानने को उत्सुक हो रहे होंगे कि आखिर उस ट्रेन का नाम क्या है? रूट क्या है अर्थात कहां से कहां तक चलती है?
कब सफर किया जा सकता है? तो चिंता न करें, हम आपको इस संबंध में पूरी जानकारी देंगे। उससे पहले आपको हैरानी की एक और बात भी बता दें कि यह ट्रेन पिछले 75 वर्षों से लोगों को मुफ्त यात्रा की सुविधा मुहैया करा रही है।
इस ट्रेन के संबंध में देश के करोड़ों लोगों को जानकारी नहीं है। जो यात्री लगातार ट्रेन में यात्रा करते हैं, वे भी इसके बारे में नहीं जानते। इस ट्रेन को बॉलीवुड की फिल्म में भी दिखाया गया है। सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्म “चलता पुरज़ा” में इसकी झलक दिखी थी।
75 वर्षों से लोग कर रहे हैं मुफ्त यात्रा, ये है रूट
इस ट्रेन का नाम है भाखड़ा-नंगल ट्रेन। यह पिछले 75 वर्षों से मुफ्त यात्रा की सुविधा दे रही है। इसका संचालन और देखरेख भाखड़ा ब्यास प्रबंधन रेलवे बोर्ड करता है, यह ट्रेन हिमाचल प्रदेश/पंजाब सीमा के साथ भाखड़ा और नंगल के बीच चलती है।
यह ट्रेन शिवालिक पहाड़ियों में 13 किलोमीटर की यात्रा करती है और सतलुज नदी को पार करती है। इस सुहाने सफर के लिए ट्रेन के यात्रियों को कोई किराया नहीं देना होता है।
1948 से चल रही है ये ट्रेन
भाखड़ा-नंगल बांध पूरे विश्व में सबसे ऊंचे सीधे बांध के रूप में जाना जाता है। इसके चलते पर्यटक दूर-दूर से इसे देखने आते हैं। अगर आप भी यहां जाते हैं तो इस ट्रेन की मुफ्त सवारी का लाभ उठा सकते हैं। 1948 में भाखड़ा-नंगल रेलमार्ग पर सेवा शुरू हुई।
भाखड़ा नंगल बांध के निर्माण के दौरान विशेष रेलवे की आवश्यकता की खोज की गई थी, क्योंकि उस समय नंगल और भाकर को जोड़ने के लिए परिवहन के कोई साधन उपलब्ध नहीं थे। भाप के इंजन के साथ इस ट्रेन को चलाया गया था, लेकिन 1953 में अमेरिका से लाए गए तीन आधुनिक इंजनों ने उनकी जगह ले ली।
तब से भारतीय रेलवे ने इंजन के 5 वेरिएंट लॉन्च किए हैं, लेकिन इस अनूठी ट्रेन के 60 साल पुराने इंजन आज भी उपयोग में हैं। इस ट्रेन के कोच बेहद खास हैं और इनका निर्माण कराची में हुआ। इसके अलावा, कुर्सियाँ भी अंग्रेजों के जमाने में मिलने वाली से लकड़ियों से बनी हैं।
बताया जाता है कि ट्रेन प्रति घंटे 18 से 20 गैलन ईंधन का उपयोग करती है, लेकिन भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) ने चुना है कि इसे फ्री में रखा जाना चाहिए और किराया नहीं लेना चाहिए। दैनिक यात्री, बीबीएमबी कर्मी, छात्र और इसे देखने के लिए पहुंचने वाले लोग अभी भी नंगल बांध नदी के किनारे स्थापित रेलवे ट्रैक पर निःशुल्क यात्रा कर सकते हैं।