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विदाई के वक्त दुल्हन अपने सिर के ऊपर से क्यों फेंकती है चावल, जाने इस रस्म के पीछे का असली कारण

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर धर्म और संप्रदाय का एक अजब मिलन देखने को मिलता है। भारत एक ऐसी संस्कृति को संजोए हुए है, जिसका संगम सिर्फ और सिर्फ यही देखने को मिलता है।
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chawal fekne ki rasam dulhan kyun krti hai
   

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर धर्म और संप्रदाय का एक अजब मिलन देखने को मिलता है। भारत एक ऐसी संस्कृति को संजोए हुए है, जिसका संगम सिर्फ और सिर्फ यही देखने को मिलता है। यही वजह है कि दुनियाभर में भारत अपनी संस्कृति और विरासत के लिए मशहूर है।

भारत में तमाम तरह के धर्मों और सम्प्रदायों की मुलाकात होती है। इन सभी के अपने कुछ तौर-तरीके और रीति-रिवाज भी होते हैं। बस अगर अंतर है तो शादियों में होने वाली रस्मों में। हर धर्म में शादियों को लेकर अलग-अलग रस्में देखने को मिलती हैं।

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उत्तर और दक्षिण भारत में भी शादियों को लेकर अलग-अलग रिवाज हैं। मगर उत्तर भारत में हिंदू परिवारों की शादियों की बात करें तो लगभग शादी की सारी रस्में और रीति-रिवाज मिलते-जुलते हैं। इसमें से एक दुल्हन की विदाई के दौरान घर से बाहर निकलते हुए पीछे की तरफ चावल फेंकने की रस्म भी है।

इस दौरान दुल्हन घर से निकलने से पहले पीछे की ओर चावल फेंकती है। ऐसा करना शुभ माना जाता है। ये रस्म हिंदू परिवारों की शादियों में जरुर होती है। जब दुल्हन घर से निकलने से पहले हाथों में चावल लेकर पीछे की ओर फेंकती है, तब पीछे खड़ा पूरा परिवार अपने पल्लू या हाथों में इन चावलों को इकट्ठा करता है।

ये रस्म दुल्हन के साथ-साथ उसके माता-पिता के लिए भी काफी भावुक होती है। हालांकि, कई लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि दुल्हन द्वारा चावल पीछे फेंकने का मतलब क्या होता और इस रस्म को क्यों किया जाता है। अगर आपके मन में भी ये सवाल आता है तो इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़िए।

शादियों में निभाई जाती है काफी रस्में 

हिंदू, पंजाबी और सिख जैसी धर्मों की शादियों में विदाई में चावल पीछे फेंकने की रस्म काफी आम है। इस रस्म को तब निभाया जाता है जब दुल्हन अपना मायका छोड़कर ससुराल जा रही होती है। वैसे हिंदू, पंजाबी और सिख धर्मों की शादियों में काफी रस्में आम हैं।

इसमें दूल्हे की स्वागत सेरेमनी की रस्में, शादी के फेरे और विदाई में भाईयों का दुल्हन की डोली को कंधा देना जैसी रस्में शामिल हैं। ये हिंदू, पंजाबी और सिख जातियों में जरुर होती हैं।

क्या होती है चावल की रस्म

शादी में सभी रस्में पूरी होने के बाद जो सबसे आखिरी रस्म होती है वो है दुल्हन को विदा कराने की रस्म। ये पल काफी भावुक भरा होता है क्योंकि दुल्हन अपना मायका छोड़कर हमेशा के लिए अपने ससुराल चली जाती है।

डोली में बैठेने से ठीक पहले चावल की रस्म को पूरा किया जाता है। जब अपने घर से दुल्हन विदा होने लगती है तो उसकी बहन, सहेली या घर की कोई भी महिला हाथ में चावल की थाली लेकर उसके पास खड़ी हो जाती है।

इन्हें काफी संभालकर रखना होता है

इसके बाद दुल्हन इस थाली से हाथ भरकर चावल उठाती है और उसे पीछे की ओर फेंकती है। जब दुल्हन चावल पीछे की ओर फेंकती है तब पीछे खड़ा पूरा परिवार अपने पल्लू या हाथों में इन चावलों को इकट्ठा करता है। दुल्हन को पांच बार अपने दोनों हाथों से चावल को पीछे की ओर फेंकना होता है।

कई बार चावल की जगह थाली में गेहूं, कोई अनाज या कई बार फूल भी होते हैं। दुल्हन को पांच बार चावल बिना पीछे देखे जोर से फेंकना होता है, ताकि चावल पीछे खड़े पूरे परिवार के ऊपर जाकर गिरें। रस्म के मुताबिक, ये चावल जिसके-जिसके पास जाता है, उसे इन्हें काफी संभालकर रखना होता है।

क्यों की जाती है ये रस्म

लोगों की इस रस्म को करने के पीछे अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। पहला कारण तो ये है कि बेटियों को हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जिस घर में बेटियां होती हैं, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है और उस घर में खुशियां बनी रहती हैं।

विदाई के समय दुल्हन लक्ष्मी सिक्के या चावल को पीछे की ओर फेंकती है। माना जाता है कि जब दुल्हन पीछे की ओर चावल फेंकती है तो इसके साथ वो धन-संपत्ति से भरे रहने की कामना करके जाती है।

अपने मायके के लिए दुआएं मांगती दुल्हन 

हिंदू धर्म में ये भी मान्यता है कि कन्या द्वारा चावल फेंकना इस बात को दर्शाता है कि भले ही वो अपने मायके को छोड़कर जा रही हो, लेकिन इन चावलों के रूप में वो अपने मायके के लिए दुआएं मांगती रहेगी। मायके के पास ये चावल दुल्हन की दुआएं बनकर हमेशा रहेंगे।

कुछ और लोगों का मानना है कि अपने माता-पिता और परिवार को 'धन्यवाद' कहने का तरीका होती है ये रस्म। बचपन से लेकर बड़े होने तक उन्होंने उसके लिए जो किया, उसका आभार व्यक्त करते हुए दुल्हन मायके वालों को इस रस्म के रूप में दुआएं देकर जाती है।

बुरी नजर दूर रखने के मकसद से भी इस रस्म को निभाया जाता है। दुल्हन के घर से चले जाने के बाद उसके परिजनों को किसी की बुरी नजर ना लगे, इसके लिए भी वह चावल फेंकने की रस्म को पूरा करती है। इसके जरिये वो अपने परिजनों के लिए एक रक्षा कवच बनाती है, ताकि उसके ना रहने के बाद पूरे परिवार की बुरी नजर से रक्षा होती रहे।

इस रस्म में चावल ही क्यों होता है इस्तेमाल

चावल को धन का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए इसे धन रुपी चावल कहते हैं। वहीं, उत्तर भारत में चावल सबसे ज्यादा ग्रहण करने वाला अनाज है और इसे धार्मिक पूजा कर्मों में भी पवित्र सामग्री मानते हुए शामिल किया गया है।

मान्यताओं के अनुसार, सुख और सम्पन्नता का प्रतीक होता है चावल। चूंकि, विदा होते समय अपने परिवार के लिए दुल्हन सुख और सम्पन्नता भरे जीवन की कामना करती है, इसलिए इस रस्म के लिए चावल का इस्तेमाल ही उत्तम माना जाता है।